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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
सूरज के चक्कर में आकर सब लोग
भूले फिरते हैं अपना घर सब लोग
सहमे सहमे अंधियारे पूछें है
आखिर क्यों फिरते हैं दर दर सब लोग।
</poem>
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