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<span class="mantra_translation">
मन इन्द्रियां और प्राण बुद्धि किसके कत आसीन हैं,<br>
प्रिय गार्ग्य ! जैसे वृक्षों पर खग विचर कर आसीन है।<br>
त्यों भू से लेकर प्राण तक सब तत्व ब्रह्म आधीन हैं,<br>
वे परम आश्रय परम कारण, आदि अंत विहीन हैं॥ [ ७ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
भू, वायु, जल, नभ, अग्नि, चक्षु, श्रोत्र, मन, रसना, त्वचा,<br>
वाक्, हस्त, कर्म,उपस्थ, मन, पग, चित्त, जीवन की ऋचा।<br>
मन बुद्धि चित्त अहम् की वृतियां, विषय उनके विभव भी,<br>
इन सबके मूल में ब्रह्म तत्व व् प्राण तत्व प्रभाव भी॥ [ ८ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
स्पर्श, सुनने, सूंघने और देखने व् जानने,<br>
सब स्वाद सात्विक मनन कर्ता और कर्म को मानने।<br>
वाला जो है जीवात्मा, वह ब्रह्म में स्थित रहे,<br>
भली भाँति स्थित ब्रह्म में, अथ तत्वगत गति में रहे॥ [ ९ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
जो कोई भी छाया शरीर व् रंगहीन विशुद्ध को,<br>
परब्रह्म अविनाशी व् अक्षर परम सिद्ध प्रबुद्ध को।<br>
जाने वही सर्वग्य एवं सर्व रूप स्वरुप है,<br>
हे सौम्य ! संशय न तनिक पर ब्रह्म रूप अनूप है॥ [ १० ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
सब प्राण पाँचों भूत अंतःकरण और ज्ञानेन्द्रियाँ,<br>
विज्ञानं मय शुचि आत्मा और जिसकी सब कर्मेन्द्रियों।<br>
लेती है आश्रय अक्षरम, अविनाशी ब्रह्म को जानते,<br>
सर्वज्ञ मय होते स्वयं और सत्ता को पहचानते॥ [ ११ ]<br><br>
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