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Kavita Kosh से
अभी जाय घर अपन बताथन। लिगरी दू-के-चार लगाथन॥
तौ फेर श्याम हाल को हो है?। हांसी खेल बात ये नो है॥
जाथौं बंधवा मेर बताथौं। ..... भुंसड़ा तोर अभी खेदवाथौं॥
'''दोहा'''