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आफ्नो हातको सिराने लागाएर
त्यसकै छेउमा निदाउन सकूँ म भनेर।
...................................................................'''[[मकान की ऊपरी मंज़िल पर / गुलज़ार|इस कविता का मूल हिन्दी पढ्ने के लिए यहाँ क्लिक करेँ ।]]'''
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