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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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आप और हम सलाम भी न करें
नफ़रतें इतनी आम भी न करें
कुछ न बोलें तेरे ख़िलाफ़ मगर
ख़ुद से क्या अब क़लाम भी न करें
कर नहीं पाएं गर हिफाज़त आप
क़त्ल का इंतज़ाम भी न करें
कुछ न कुछ हम से काम है वर्ना
आप यूँ तो सलाम भी न करें
लोग हमदर्दियां जताने लगें
दर्द को इतना आम भी न करें
सिर्फ़ उलझे रहें सियासत में
लोग क्या काम वाम भी न करें
</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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आप और हम सलाम भी न करें
नफ़रतें इतनी आम भी न करें
कुछ न बोलें तेरे ख़िलाफ़ मगर
ख़ुद से क्या अब क़लाम भी न करें
कर नहीं पाएं गर हिफाज़त आप
क़त्ल का इंतज़ाम भी न करें
कुछ न कुछ हम से काम है वर्ना
आप यूँ तो सलाम भी न करें
लोग हमदर्दियां जताने लगें
दर्द को इतना आम भी न करें
सिर्फ़ उलझे रहें सियासत में
लोग क्या काम वाम भी न करें
</poem>