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अपनी भाषा की खेती करना
हमारे जूड़ों में
नहीं शोभते इसके फूल,...हमारी हमारे घनेकाले जूड़ों में शोभते हैंजंगल के फूल
जंगली फूलों से ही
हमारी जूड़ों का सार है,...
काले बादलों के बीच
पूर्णिमा की चाँद की तरह
ये मुस्काराते हैं ।मुस्कराते हैं।
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