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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
}}
हवा विपरीत है हम जानते हैं
हवाओं का भी दम—खम जानते हैं !
अगर तुम जानते हो सारी बातें
तो हम भी तुम से कुछ कम जानते हैं !
युवा नदियों के बूढ़े सागरों से
कहाँ होते हैं संगम , जानते हैं !
मुझे वे क्षण नहीं अब याद, लेकिन
वे सारे दृश्य अलबम जानते हैं
धरा पर मौत के सौदागरों को
बहुत अच्छी तरह 'यम' जानते हैं !
कहाँ तक जाएँगे ये क्रांतिकारी
ये हर दल—बल के परचम जानते हैं !
वे अपने बाद, अपने दुश्मनों का
गजल—साहित्य में क्रम जानते हैं !
</poem>