भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा विपरीत है हम जानते हैं / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
हवा विपरीत है हम जानते हैं
हवाओं का भी दम—खम जानते हैं !
अगर तुम जानते हो सारी बातें
तो हम भी तुम से कुछ कम जानते हैं !
युवा नदियों के बूढ़े सागरों से
कहाँ होते हैं संगम , जानते हैं !
मुझे वे क्षण नहीं अब याद, लेकिन
वे सारे दृश्य अलबम जानते हैं
धरा पर मौत के सौदागरों को
बहुत अच्छी तरह 'यम' जानते हैं !
कहाँ तक जाएँगे ये क्रांतिकारी
ये हर दल—बल के परचम जानते हैं !
वे अपने बाद, अपने दुश्मनों का
गजल—साहित्य में क्रम जानते हैं !