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कहने को सब धूप कहे रे
सहने को सब रूप सहे रे
मन की बाढ़ न बाहर निकले
भीतर-भीतर कूप बहे रे
प्रातः सार मवेशी ढीलेरेतीले टीले परपूरा कांँदो-कीच कढ़ीलेदुनियाक्वाँर कसाई एक न मानेंसहती दिन कीघर के बाहर पीठ उचीलेतेज दुपहरीपरछी के पिछवाड़े कण्डेऊपर पांँवपाथे ममता आंँख तरेरेउठाकर सोतीरोके गिरना सरग टिटहरी.
चूल्हा-चौंका बर्तन भाँड़ेकोटर से बाहरचारा-पानी आँत निकारेआ चूजेअदहन-१ देते हुई दुपहरीनभ को तौलदाल चुरी न आटा माड़ेतलाशें पखनेहलधर लौटा खेत जोतकरनन्हीं चोंचों सेबारी -जैसे बैल उरेरे-२इक दूजेकहते आपसका दुख अपनेकस ली अपनीकमर अभी सेलौटाने को याद सुनहरी.
खेत काटकर लाँक३ सहेजेसंघर्षों में जुटीउरदा, तिली, धान के बोझेहुई मांँपीली पड़ी जुन्हाई मुँह कीचुग्गे गढ़करअंँखियों ले आ देतीगील गलाकरने को भरतीमुंँह मेंजलती धू-धू रेतीभूख आफतों से संदेश भेजेतुर्रेदार हवा सीने परजूझी तोझांँके हड्डी देह इकहरी. आहट सेसंवेदित होकरटिटिर टियूँ नेआवाज लगाईकोमल पंजों कोआ करकेनई सुरक्षाकवच ओढ़ाईअपने प्राणबचा ले जातीघेरे बाइसलोग गिलहरी.ठण्डे क्यों अंगार बिखेरे?
टिप्पणी :
१.अदहन- बर्तन में चूल्हे पर टांँगा गया भोजन पकाने का पानी।
२.उरेरे- बैल का शारीरिक क्षति पर ध्यान न देते हुए बाड़ को तीब्रता से दूर फेंकना या पलटना। ३.लांँक-पौधे सहित काटी गई फसल, जिसमें अन्न के दाने होते हैं।
-रामकिशोर दाहिया
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