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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
रिक्त उदर में जले अँगीठी,
आँत करे उत्पात ।
हर कातर स्वर करे अनसुना
विकट पूस की रात

कौन्तेय को लघुतर करने
खींचें खड़ी लकीर ।
दानवीर कम्बल वितरित कर,
खिंचवाएँ तस्वीर ।

आँगन में है कुहरा, घर में
औंधी पड़ी परात ।

प्यास न अधरों की बुझ पाई,
भरा नयन में नीर ।
खरपतवार उगे हैं जब भी,
रोपी आस उशीर ।

नीति पिण्ड भी नित नव रह-रह,
करते उल्कापात ।

आश्वासन ही आश्वासन पर,
देख रहा गणतंत्र ।
हाकिम फूँकें लालकिले से,
विफल हुए वे मंत्र ।

वादों की नंगी तकली पर,
सूत रहे हैं कात ।
</poem>
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