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Kavita Kosh से
अब पैरों के बीच रहता है बहुतों का आना-जाना
अब माथे के भीतर भों-भों करता धीमा-भारी स्वर
अब कविता होगी । पुराने कपड़ों की भाँति पड़ा रहेगा सभी तरह का छल - चातुर्य।
'''मूल बांगला से अनुवाद : मीता दास'''
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