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दीवार के उस पार / मृदुला सिंह

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|संग्रह=पोखर भर दुख / मृदुला सिंह
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<poem>
सुना है दीवार के उस पार कहीं
असली भारत रहता है
जो इस ओर परोसे गए
सोने के वर्तनों के भोग का स्वाद
नही जानता
दिन रात पेट की जुगत में लगा
यह भारत मासूम है
नही देखना चाहता था वह
उस तरफ की साहबों की सवारी
पर दीवार ने अपनी गर्दन ऊंची कर
रोक लिया है उन्हें
और चेताया है उनकी हद

आओ! कर दें सुराख इन दीवारों में
कि अब बहुत हुआ खेल रोशनी का
दीवार के उस पार के हिदुस्तान को भी
रोशनी का हक है
दीवारें जड़ें जमाये
इससे पहले
इन्हें ढहा दिया जाना चाहिए
</poem>
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