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<poem>
हमारी रूह के यूँ अक्स मिलते हैं
अचानक राह में कुछ शख़्स मिलते हैं

तरसती थीं निगाहें जिस मुहब्बत को
कहीं अब दिल पे उसके नक़्श मिलते हैं

खड़े थे साँस रोके मुद्दतों से हम
बिखरते घुँघरू में रक़्स मिलते हैं

कटे-टूटे परों के साथ उड़ता वो,
थकी आँखों को अब भी चक्श मिलते हैं

न आ सकता ख़ुदा सब अंधियारों पर,
मशालों को लिए कुछ बख़्श मिलते हैं
</poem>
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