भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक=सुरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
और मैं सोचा करता अक्सर :
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे ।

जब मैं कहूँ —
कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिन्दी-चिन्दी होगा ।
कि तुम रसातल में धँस जाओगेअँधेरेअगर पैर जमाए खड़े न रहे —

देख ही रहे हो यह तुम !

1956 : सम्भवतः ब्रेष्त की अन्तिम कविता

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits