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{{KKRachna
|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मेरे उड़ान भरने के दूसरे साल
मैंने पढ़ा एक अख़बार में
एक विदेशी ज़बान में
कि मैंने खो दी है अपनी नागरिकता ।
मैं न दुखी हुआ, न ख़ुश
पढ़ा जब अपना नाम
दूसरे बहुत सारे नेक और बद नामों के बीच ।
बदतर नहीं लगी मुझे
पलायन करने वालों की दुर्गति
जो वहीं बने रहे उनकी दुर्गति से ।
1935
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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|अनुवादक=सुरेश सलिल
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मेरे उड़ान भरने के दूसरे साल
मैंने पढ़ा एक अख़बार में
एक विदेशी ज़बान में
कि मैंने खो दी है अपनी नागरिकता ।
मैं न दुखी हुआ, न ख़ुश
पढ़ा जब अपना नाम
दूसरे बहुत सारे नेक और बद नामों के बीच ।
बदतर नहीं लगी मुझे
पलायन करने वालों की दुर्गति
जो वहीं बने रहे उनकी दुर्गति से ।
1935
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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