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अमर वरदान / जी. छिरीङ

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<poem>
एक्लै हिजो साँझमा,
हेरिरहेथेँ पश्चिम गगनमा
ध्यानस्त वर्षापछि कुनै मेघमाला
कौतुक यस्तो देखेँ;
जोडी हात गरी विषाद्
आँखा भरी आँसू
</poem>
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