भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ - 1 / रेखा राजवंशी

954 bytes added, 14:37, 28 जनवरी 2022
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।

मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।

वो बात बेबात
हंसती है, मुस्कुराती है ।

कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है ।

तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।

कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है ।
</poem>