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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।
मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।
वो बात बेबात
हंसती है, मुस्कुराती है ।
कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है ।
तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।
कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है ।
</poem>
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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।
मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।
वो बात बेबात
हंसती है, मुस्कुराती है ।
कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है ।
तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।
कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है ।
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