भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने फिर आज
पुरानी यादों का
संदूक खोला
गुज़रे लम्हों को तोला ।
कुछ ढलके आंसू
जो अब भी नर्म थे
भूले बिसरे अफ़साने
जो अब तक गर्म थे ।
कुछ पत्थर, कुछ मोती
जो मैंने बटोरे थे
बचपन की यादों के
रेशमी डोरे थे ।
कागज़ के टुकड़े थे
अनलिखी कहानी थी
हो गई फिर ताजी
पीर जो पुरानी थी ।
बंद संदूक में
ख्वाहिश की कतरन थी
तबले की थापें थीं
टुकड़े थे, परन थी ।
देखा, सराहा
कुछ आंसू बहाए
बंद संदूक में
फिर सब छिपाए ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने फिर आज
पुरानी यादों का
संदूक खोला
गुज़रे लम्हों को तोला ।
कुछ ढलके आंसू
जो अब भी नर्म थे
भूले बिसरे अफ़साने
जो अब तक गर्म थे ।
कुछ पत्थर, कुछ मोती
जो मैंने बटोरे थे
बचपन की यादों के
रेशमी डोरे थे ।
कागज़ के टुकड़े थे
अनलिखी कहानी थी
हो गई फिर ताजी
पीर जो पुरानी थी ।
बंद संदूक में
ख्वाहिश की कतरन थी
तबले की थापें थीं
टुकड़े थे, परन थी ।
देखा, सराहा
कुछ आंसू बहाए
बंद संदूक में
फिर सब छिपाए ।
</poem>