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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=शायक आलोक
|संग्रह=
}}
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<poem>
बचपन में उसने कभी फतिंगों के पर नहीं तोड़े
बिल्लियों की पूँछ में नहीं बाँधा टिन का खिलौना
या झींगुरों को माचिस की डिबिया में बन्द नहीं किया
या चींटियों के ढूह नहीं रौंदे
वह बड़ा हुआ
और ये सब चीज़ें उसके साथ की गई
जब वह मरा मैं उसके सिरहाने बैठा था
उसने कहा मेरे लिए एक कविता पढ़िए
जो सूरज के बारे में हो और समन्दर के बारे में
परमाणु रिएक्टरों और सैटेलाइटों के बारे में
जो हो मानवता की महानता के बारे में ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शायक आलोक'''
</poem>
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बचपन में उसने कभी फतिंगों के पर नहीं तोड़े
बिल्लियों की पूँछ में नहीं बाँधा टिन का खिलौना
या झींगुरों को माचिस की डिबिया में बन्द नहीं किया
या चींटियों के ढूह नहीं रौंदे
वह बड़ा हुआ
और ये सब चीज़ें उसके साथ की गई
जब वह मरा मैं उसके सिरहाने बैठा था
उसने कहा मेरे लिए एक कविता पढ़िए
जो सूरज के बारे में हो और समन्दर के बारे में
परमाणु रिएक्टरों और सैटेलाइटों के बारे में
जो हो मानवता की महानता के बारे में ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शायक आलोक'''
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