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हुड़क उठी दिन- रात है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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05:29, 2 जून 2022
जिनसे मन मिलता नहीं, वे मिल जाते रोज।
जो मन में हर पल बसे , उन्हें न पाते खोज।
205
धार भोथरी हो गई , मुझे लगे जो तीर।
मर्माहत करती सदा, मुझको तेरी पीर।
206
धड़कन
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0-
धड़कन तुम बसे, बन साँसों की साँस।
दूर कहाँ तुम जा सके, रहते हरदम पास।
</poem>
वीरबाला
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