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परख / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
रुत आयां इज ठाह पड़ै
पण चांणचक
के औ झकरंडा रौ झाड़ कोनीं हौ
जिणनै इत्ता बरसां
औ जांण सींच्यौ
के औ झकरंडौ है।

इणरा फूल सोसनी कोनीं
पीळास माथै है
कदास, आंवळ लागै
औ कैय अपां अचंभै तौ झिल जावां

पण नीं जांणता थका,
साव गाफल
के इण बिचाळै जिकौ समियौ नीसरग्यौ
वा आवगी जूंण ही
अबै इण नवी जांणकारी रौ कांई करां!
</poem>
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