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ओळूं जाळ / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
ओळूं री मकड़ी
बोली-बोली आपरै मूंडै सूं राळ काढ
बधायां जावै हहै
आपरै जाळा रा घेरा
घेरा माथै घेरा
उणनै कीं बेरौ नीं
कठालग औ अणथाक सिलसिलौ
हालैला यूं
जांणै जूंण
उण आंती आय
अेक दिन धार ली
के धाप नै ओळूं कर कराय
निवेड़ दे
वौ जांणतौ ई कोनीं हौ
खरचियां तर-तर बधै आ बलाय
सीर बायरी घड़ै नै दे झळकाय

आपरै जाळा रै मज्झ आधेटै बैठी
मकड़ी
सेवट-अेक न अेक दिहाड़ै
काठी आंती आय
इण जाळा रा सगळा झीणा तांता
गिट जावैला

पण वठा लग वौ कांई करै
जठा लग
चितार-चितार ओळूं आमीज नीं जावै
वठा लग
उणनै करणीज पड़ैला
उडीक।
</poem>
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