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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
कार - कोठियाँ, बँगले - शँगले
अपने नाम लिखें
जैसे भी हो
बड़ों सरीखे हम भी बड़े दिखें !
सही - साँझ
बोतलें - मुर्ग़ियाँ
करते हुए ज़िबह
अँगरेज़ी - अख़बार जीभ से
चाटें सुबह - सुबह,
संग चुस्किया कॉफ़ी - शाफ़ी
कुछ नमकीन चखें !
चन्दा - सूरज
धरती घूमें
बैठे स्वयं रहें
करें उल्टियाँ अन्धेरों की
लोग प्रकाश कहें,
बैंक भरें लॉकर - शाकर से
ऊँचा माथ रखें !
4 जून 1975
</poem>
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|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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कार - कोठियाँ, बँगले - शँगले
अपने नाम लिखें
जैसे भी हो
बड़ों सरीखे हम भी बड़े दिखें !
सही - साँझ
बोतलें - मुर्ग़ियाँ
करते हुए ज़िबह
अँगरेज़ी - अख़बार जीभ से
चाटें सुबह - सुबह,
संग चुस्किया कॉफ़ी - शाफ़ी
कुछ नमकीन चखें !
चन्दा - सूरज
धरती घूमें
बैठे स्वयं रहें
करें उल्टियाँ अन्धेरों की
लोग प्रकाश कहें,
बैंक भरें लॉकर - शाकर से
ऊँचा माथ रखें !
4 जून 1975
</poem>