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Kavita Kosh से
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घिरी उदासी जब जीवन में
तब मैंने त्योहार मनाया।
रोते रहे लोग जब जीभर
आँसू पीकर मैं मुस्कायामुस्काया।
रो-रोकर जो दिन कटने थे
मेरे आगे हार गई थी
जीवन की हर इक मजबूरी, मजबूरी।
गिरकर उठकर पूरी की थीं,
धरती से अम्बर की दूरी।
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