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|रचनाकार=राजेन्द्र तिवारी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
लोग नाहक जुनून की ख़ातिर
रो रहे हैं सुकून की ख़ातिर
लाख रिश्तों की बर्फ़ जम जाये
ख़ून दौड़ेगा ख़ून की ख़ातिर
वो मेरे साथ-साथ है ऐसे
जनवरी जैसे जून की ख़ातिर
हाँकने में जुटे हैं चरवाहे
हम तो भेड़ें हैं ऊन की ख़ातिर
क्या ज़बानों को मार डालेंगे
बस इसी नून-मीम की ख़ातिर
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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लोग नाहक जुनून की ख़ातिर
रो रहे हैं सुकून की ख़ातिर
लाख रिश्तों की बर्फ़ जम जाये
ख़ून दौड़ेगा ख़ून की ख़ातिर
वो मेरे साथ-साथ है ऐसे
जनवरी जैसे जून की ख़ातिर
हाँकने में जुटे हैं चरवाहे
हम तो भेड़ें हैं ऊन की ख़ातिर
क्या ज़बानों को मार डालेंगे
बस इसी नून-मीम की ख़ातिर
</poem>