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<poem>
बचपन में
साथियों सा … साथियों संग
जाता था … खेतों में

वे जाते थे कुछ खाने — बेर, कच्चे चने
मैं जाता था कुछ देखने — हिरन, खरगोश

अकेला खड़ा
देखता रहता
ऊँची मेंड़ पर कुलाँचे भरते
हिरन

दिल करता … ईश्वर मुझे हिरन बना देता
मनमर्जी से … खाता-पीता, दौड़ता रहता

खेत से भाग सभी
बुधराम की भट्ठी पर आ बैठते
बुधराम चाक घुमाता
बर्तन बनाता रहता
हम इर्द-गिर्द बैठ जाते

बुधराम पूछता – बताओ क्या बनेगा ?
— दीया ! हम सभी इकट्ठे बोलते

वह अपनी उँगलियों के दबाव बदलता
बन जाता
कुछ और

हंस पड़ता बुधराम
जीत जाता बुधराम
हार जाते हम

फिर बुधराम बारी-बारी
हर एक के हिस्से का
बनाता एक बर्तन

मेरा-मेरा — करते रहते
ठण्डी काली मिट्टी
के पास बैठे
हम बच्चे

सोचता हूँ आज

अगर मैं
बुधराम जितना जानता होता
ईश्वर को
तो बन जाता
मैं हिरन ।

'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
</poem>
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