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भीड़ / शंख घोष / मीता दास

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<poem>
— छोटे होकर उतर जाइए, महाशय !
— महीन होकर उतर जाइए, महाशय !
— ऑंखें नही हैं क्या ? क्या आँखों से दिखता नही है ?
— महीन हो जाइए, छोटे हो जाइए ....

सदर में, बाज़ार में, या ओट में ?
भीड़ के बीच खड़े होने पर भी क्या मैं
अपने ही समान नित्य ही
और कितना छोटा हो जाऊँ, ईश्वर !?

'''मूल बांग्ला से अनुवाद : मीता दास'''
</poem>
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