भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
यशोधरा-सी धरा को
नींद में छोड़कर
चले गए सिद्धार्थ-से बादल ।
फटी, खुली रह गईं बिवाई-सी
निस्तेज दरारें
दो बूँद पानी के लिए
रिसता रहा लहू
पपड़ाए होंठों-सा धरातल ।
हो गया तार-तार
जीर्ण-शीर्ण फसलों का
चिथड़ा-चिथड़ा आँचल ।
आकाश में उतरा सूरज
बटमार बनकरके
चला गया छाती पर
जलती किरणों का रोड रोलर
पल प्रतिपल ।
-0-(21/ 8/1987)
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
यशोधरा-सी धरा को
नींद में छोड़कर
चले गए सिद्धार्थ-से बादल ।
फटी, खुली रह गईं बिवाई-सी
निस्तेज दरारें
दो बूँद पानी के लिए
रिसता रहा लहू
पपड़ाए होंठों-सा धरातल ।
हो गया तार-तार
जीर्ण-शीर्ण फसलों का
चिथड़ा-चिथड़ा आँचल ।
आकाश में उतरा सूरज
बटमार बनकरके
चला गया छाती पर
जलती किरणों का रोड रोलर
पल प्रतिपल ।
-0-(21/ 8/1987)
</poem>