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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
शीर्ष आसन
कर रहे हैं दिन
ज़रा बीमार-से हैं !
कभी हिलते
कभी डुलते
बना स्कन्ध स्तम्भक सरीखे
अब सधेगी भूख
वातज रोग विनशें
कुम्भकादि फ़ायदे होंगे अदीखे,
सीखतर यों
डर रहे हैं दिन
लगे दीवार से हैं !
भुजाओं पर
जमाए सर
खड़े आकाश पैरों पर उठाए
अब दलिद्दर दूर होंगे
उम्र-भर के
लौट जाएगा बुढ़ापा दुम दबाए,
शक्ति भीतर
भर रहे हैं दिन
उठे मीनार-से हैं !
23-5-1976
</poem>
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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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शीर्ष आसन
कर रहे हैं दिन
ज़रा बीमार-से हैं !
कभी हिलते
कभी डुलते
बना स्कन्ध स्तम्भक सरीखे
अब सधेगी भूख
वातज रोग विनशें
कुम्भकादि फ़ायदे होंगे अदीखे,
सीखतर यों
डर रहे हैं दिन
लगे दीवार से हैं !
भुजाओं पर
जमाए सर
खड़े आकाश पैरों पर उठाए
अब दलिद्दर दूर होंगे
उम्र-भर के
लौट जाएगा बुढ़ापा दुम दबाए,
शक्ति भीतर
भर रहे हैं दिन
उठे मीनार-से हैं !
23-5-1976
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