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आह, वो तितली सी सुन्दर, भोली-भाली बान्धवियाँ
आह, वो नन्हे पैरों व कजली आँखों वाली जाह्नवियाँ
अभी नई-नई हैं, ख़ाली पड़ी हैं, ये ख़ूबसूरत इमारतें
पुरानी परीकथाओं की हैं जैसे, एकदम नई इबारतें
 
ओह, ये डरी हुई सी बेख़बरी औ’ घबराया अनजानापन
चेहरे पे एक मुखौटा-सा है, आकुल-व्याकुल सा है यौवन
बारीक और महीन बुनाई के घूँघट से ढका हुआ चेहरा
तेरे गुस्से में जो प्यार छुपा, है वही रति का पंचशर घेरा
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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