भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चेहरे पे एक मुखौटा-सा है, आकुल-व्याकुल सा है यौवन
बारीक और महीन बुनाई के घूँघट से ढका हुआ चेहरा
तेरे और गुस्से में जो प्यार छुपा, है वही रति का पंचशर घेरा  
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits