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{{KKRachna
|रचनाकार=महेंद्र नेह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भाई ने भाई मारा रे
ये कैसी अनीति अधमायत ये कैसा अविचारा रे ।
एक ही माँ की गोद पले दोउ नैनन के दो तारा रे ।।
जोते खेत निराई कीनी बिगड़ा भाग सँवारा रे ।
दोनों का संग बहा पसीना घर में हुआ उजारा रे ।।
अच्छी फ़सल हुई बोहरे का सारा कर्ज़ उतारा रे ।
सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे ।।
कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे ।
खेत बॅंट गए, बँट गए रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे ।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे ।
रक्तिम हुई धरा, अम्बर में घुप्प हुआ अन्धियारा रे ।।
</poem>
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|रचनाकार=महेंद्र नेह
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भाई ने भाई मारा रे
ये कैसी अनीति अधमायत ये कैसा अविचारा रे ।
एक ही माँ की गोद पले दोउ नैनन के दो तारा रे ।।
जोते खेत निराई कीनी बिगड़ा भाग सँवारा रे ।
दोनों का संग बहा पसीना घर में हुआ उजारा रे ।।
अच्छी फ़सल हुई बोहरे का सारा कर्ज़ उतारा रे ।
सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे ।।
कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे ।
खेत बॅंट गए, बँट गए रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे ।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे ।
रक्तिम हुई धरा, अम्बर में घुप्प हुआ अन्धियारा रे ।।
</poem>