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तासीर / रुचि बहुगुणा उनियाल

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<poem>
महल के ऊँचे झरोखे से
दिनभर तकती रहती थीं
दो आँखें

वैद्य न ढूँढ़ पाया
बीमारी की वजह
नब्ज़ टटोल के ।

शवयात्रा के साथ-साथ
चल रहा था कोई
चुप्पी साधे, आँसू रोके

आजकल सीढ़ियों पर बैठे
पानी पर उकेरता है
एक चेहरा कोई ।

पानियों की तासीर
अचानक बहुत ही
फ़ायदेमन्द हो गई है ।
</poem>
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