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{{KKRachna
|रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
महल के ऊँचे झरोखे से
दिनभर तकती रहती थीं
दो आँखें
वैद्य न ढूँढ़ पाया
बीमारी की वजह
नब्ज़ टटोल के ।
शवयात्रा के साथ-साथ
चल रहा था कोई
चुप्पी साधे, आँसू रोके
आजकल सीढ़ियों पर बैठे
पानी पर उकेरता है
एक चेहरा कोई ।
पानियों की तासीर
अचानक बहुत ही
फ़ायदेमन्द हो गई है ।
</poem>
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महल के ऊँचे झरोखे से
दिनभर तकती रहती थीं
दो आँखें
वैद्य न ढूँढ़ पाया
बीमारी की वजह
नब्ज़ टटोल के ।
शवयात्रा के साथ-साथ
चल रहा था कोई
चुप्पी साधे, आँसू रोके
आजकल सीढ़ियों पर बैठे
पानी पर उकेरता है
एक चेहरा कोई ।
पानियों की तासीर
अचानक बहुत ही
फ़ायदेमन्द हो गई है ।
</poem>