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<poem>
खेत - खेत
शहर - शहर
तुम्हारे बेआवाज़ जहाज़
आसमान से फेंक रहे हैं
शक्कर की बोरियाँ

इस देश के जिस्म पर
फैल रही हैं चींटियाँ
छलाँग लगाने के लिए नदी भी नहीं बची —

मिठास के व्यापारी
यह दुनिया मीठी हो सकती है
पर मेरी जीभ तुम्हारा उपनिवेश नहीं हो सकती

यह हिन्दी का नमक चाटती है ।
</poem>
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