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असरार-ए-पैदा / इक़बाल

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उस क़यूम को शमशीर की हाजत नहीं रहती
हो जिसके जवानों की ख़ुदी सूरत-ए-फ़ौलाद

नाचीज़ जहान-ए-मेह-ओ-परवीन तेरे आगे
वोह आलम-ए-मजबूर है, तू आलम-ए-आज़ाद

मौजों की तपिश क्या है, फ़क़्त ज़ौक़-ए-तलब है
पिनहाँ जो सदफ़ में है, वो दौलत है ख़ुदाबाद

शाहीन कभी परवाज़ से थक कर नहीं गिरता
पुर दम है अगर तू तो नहीं ख़तरा-ए-उफ़्फ़ाद
</poem>
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