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जब हमारे शहरशार्क मछलियों को बरबाद हुएबूचड़ों की लड़ाई सेनेस्तनाबूदहमने उन्हेंफिर से बनाना शुरू कियाठण्ड, भूख और कमज़ोरी में ।मैंने चकमा दिया
मलबे लदे ठेलों शेरों कोख़ुद ही खींचा हमने,धूसर अतीत की तरहनंगे हाथों खोदीं ईंटें हमनेताकि हमारे बच्चेदूसरों के हाथों न बिकेंमैंने छकाया
अपने बच्चों के लिएपर मुझे हमने बनाए तबजिन्होंने हड़प लियास्कूलों में कमरेवे और साफ़ किया स्कूलों कोखटमल थे ।
और माँजा,पुराना कीचड़ भराशताब्दियों का ज्ञानताकि वह बच्चों के लिए सुखद हो । (19471941-5347)
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल'''
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