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|रचनाकार=लिअनीद गुबानफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
तो क्या भेंट करोगी हमें ये सुरा ?
मर्गारेट के फूलों की सस्ती पीड़ा ?
वनस्पति घी पर जलती दॊ अदद अफ़वाहें ?
लाइलैक, जिसने पीठ कर रखी है हमारी तरफ़ ?
प्यार की फटकार सुनाता हूँ नोटबुक में
फटकार सुनाता हूँ शराबख़ाने से बाहर निकली वेश्याओं को ?
आँसुओं से भरी मेरी आँखें ऐसी ही रहेंगीं ।
और नीला कमरबन्द कस नहीं पाएगा गले को ।
तो क्या भेंट करेंगे हमें ये आकाश,
जब हम होंगे ही नहीं उनकी छत्र-छाया में ।

'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Леонид Губанов

</poem>
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