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|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
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<poem>
जिस - जिसको जितनी तकलीफ़ दी है
सहज मे ही जिस - जिसको –
एक एक कर सब लौट रहे हैं,
एक एक कर खींचकर फाड़ रहे हैं
मन के हाथ, पैर, होंठ और स्तन ।

और कर्त्तव्य है मेरा यह ,
जतन से सबको इकट्ठाकर
फिर से जोड़ देना यथावत,
पहले की तरह ।

'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>
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