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|रचनाकार=अनीता सैनी
}}
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अबोलापन
बाँधता है
संवाद से पहले
होनेवाली
भावनाओं की
उथल-पुथल को
साँसों की डोरी से ।
मौन भी काढ़ता कसीदा
आदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।
भाव-भंगिमा का
बिखराव
एहसास के सेतु पर अकुलाहट
समयाभाव
अपेक्षा का ज्वार
गहरे
बहुत गहरे में
है डुबोता।
</poem>
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अबोलापन
बाँधता है
संवाद से पहले
होनेवाली
भावनाओं की
उथल-पुथल को
साँसों की डोरी से ।
मौन भी काढ़ता कसीदा
आदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।
भाव-भंगिमा का
बिखराव
एहसास के सेतु पर अकुलाहट
समयाभाव
अपेक्षा का ज्वार
गहरे
बहुत गहरे में
है डुबोता।
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