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Kavita Kosh से
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बारिश होती रही सारी रात, पानी बिना रुके बहता रहा
अलसी के तेल का दिया कमरे में सारी रात जलता रहादहता रहा
अपने कासनी घूँघट में से धरती धीरे-र्धीरे साँसें लेती रही
गर्म प्याले से उठे उठती है भाप जैसे, धरा से वैसे धुआँ उठता से धुआँ महता रहा
कब अपना सिर उठाएगी घास, धरती से बाहर आएगी