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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
'''1-हे मेरे प्राणों के प्राण!'''
तू मेरे हर दुख का त्राण।
तुझसे मेरे तीनों लोक
तुम हर लेते मेरे शोक।
कभी न होना मुझसे दूर
तुम मेरे नयनों का नूर।
( 25/8/2023)
2
ईर्ष्या की लू लपट से तन जला,मन भी जला।
राख केवल अब बची किरदार ऐसे हो गए ।
22/8/2023

</poem>