भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
सचमुच बहुत देर तक सोए
इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
तुमने सब संकल्प डुबोए ।
उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
लोगों के इतिहास बन गए
तुमने सब सम्बोधन खोए ।
'''किनारे ’किनारे के पेड़ पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से'''
</poem>