भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
सचमुच बहुत देर तक सोए
 
इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
तुमने सब संकल्प डुबोए ।
जिन को जिनको कल की फ़िक्र नहीं है
उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
लोगों के इतिहास बन गए
तुमने सब सम्बोधन खोए ।
'''किनारे ’किनारे के पेड़ पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits