भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार शेखर |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार शेखर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGazal}}
<poem>
ख़यालों का संसार कितना हसीं है,
यह जीवन का आधार कितना हसीं है।

बड़ों से असहमत, कहें मन की बातें,
ये बच्चों का इसरार कितना हसीं है।

उसूलों की ख़ातिर अलग राह पकड़ी,
वो रूठा हुआ यार कितना हसीं है।

जो कीं कोशिशें और अंडे से निकली,
ये तितली का आचार कितना हसीं है।

सृजन कार्य में रत रहा जो, जताता,
ये जीवन का इज़हार कितना हसीं है।

उन्हें क्या पड़ी जो उसूलों की सोचें,
शरीफ़ों का इनकार कितना हसीं है।

ज़मीं है ये बिस्तर, हवा है रज़ाई,
प्रबंधन ये सरकार कितना हसीं है।

नहीं ख़्वाब होता कोई इससे बेहतर,
हक़ीक़त का संसार कितना हसीं है।

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर
</poem>