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Kavita Kosh से
इन परिंदों को ज़रा तुम पंख फैलाने तो दो
ऐ अँधरो अँधेरो ! देख लेंगे हम तुम्हें भी कल सुबह
सूर्य को अपने सफर से लौट कर आने तो दो