भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आकाश के नीचे, घर में, सेमल के दुलार से स्तम्भित
मैं पदप्रान्त पदतल (तलुवे) से उस स्तम्भ का निरीक्षण करता हूँ ।
जिस तरह वृक्ष के नीचे खड़ा होता है पथिक, उस तरह
अकेले-अकेले देखता हूँ मैं इस सुन्दरता की संग्लिष्ट संश्लिष्ट पताका को ।
अच्छा हो - बुरा हो, मेघ आसमान में फैल जाता है