भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों क़ब्रों और मसानों में।
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।
धीरे -धीरे समझ गए आखिर आख़िर सारे मुर्गे, दोनों में है जहर ज़हर हरे केसरिया दानों में।
सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
आखेटक आकर फँसते अब रोज रोज़ मचानों में।
कमल, साइकिल, हाथी, हसिया, पंजा सब हैं , झाड़ू, कमल सभी एकसे, मिलजुल कर ये ले जायेंगे देश खदानों चुन भर लेने से ख़ुद को मत गिनो सयानों में।
घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
खोज रहा कानून झुग्गियों वनों में और मकानों में।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits