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न राहुल हाकिम से , न मोदी मुंसिफ़ से , न ख़ाकी से , न खादी से।
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से।
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से।
ये रेखा है गरीबी की जहाजों जहाज़ों से नहीं दिखती,
ज़मीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से।
चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’,
ज़माने तंग आया मैं तेरी आशिक आशिक़ मिज़ाजी से।
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