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|रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा
|अनुवादक=राजा खुगशाल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ज़ख़्मी सारस को
पुकारते हैं लोग कूरली...कूरली !
शरद ऋतु में जब खेत
भुरभुरे और तपे हुए होते हैं
मैं रुग्ण सुनती हूँ उन पुकारों को
हल्के विरल बादल
और घने जंगलों में सुनाई देती है
सुनहरे पंखों की सरसराहट
यही समय है उड़ने का
खेतों और नदी के आसमान में
दूर-दूर तक उड़ने का समय
कपोलों से बहते आँसुओं को
दुर्बल हाथों से पोंछने का समय ।
—
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खुगशाल'''
</poem>
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ज़ख़्मी सारस को
पुकारते हैं लोग कूरली...कूरली !
शरद ऋतु में जब खेत
भुरभुरे और तपे हुए होते हैं
मैं रुग्ण सुनती हूँ उन पुकारों को
हल्के विरल बादल
और घने जंगलों में सुनाई देती है
सुनहरे पंखों की सरसराहट
यही समय है उड़ने का
खेतों और नदी के आसमान में
दूर-दूर तक उड़ने का समय
कपोलों से बहते आँसुओं को
दुर्बल हाथों से पोंछने का समय ।
—
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खुगशाल'''
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