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|रचनाकार=नामवर सिंह
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<poem>
विजन गिरि पथ पर
चटखती
पत्तियों का लास ।
हृदय में
निर्जल नदी के
पत्थरों का हास ।
’लौट आ,
घर लौट’
गेही की कहीं आवाज़ ।
भीगते से वस्त्र
शायद
छू गया वातास ।
</poem>
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विजन गिरि पथ पर
चटखती
पत्तियों का लास ।
हृदय में
निर्जल नदी के
पत्थरों का हास ।
’लौट आ,
घर लौट’
गेही की कहीं आवाज़ ।
भीगते से वस्त्र
शायद
छू गया वातास ।
</poem>